आज, कल से थोड़ा अलग सा लगता है,
अब तो हर मौसम कुछ बदला सा लगता है।
कही वन कट रहे है, तो कही लोग भूख से तड़प रहे है,
कही पर्वत पिघल रहे है, तो कही समुद्र में टापू डूब रहे है।
अब तो पानी भी सोच कर पीना पड़ता है,
कभी-कभी तो हवा का ज़हर कब्र तक सहना पड़ता है।
परिवर्तन तो हमेशा से ही प्रकर्ति का नियम रहा है,
तो इस नियम से इतना भय क्यों लगता है?
कही ये अपनो की अपनो के प्रति चिंता तो नहीं,
या भविष्य के प्रति चिंतन की शुरुआत तो नहीं।
भेदभाव को भुला हमे मनुष्यता को अपनाना होगा,
आचरण से अवगत रह इस पृथ्वी को बचाना होगा।
अभी तो परिवर्तन का क्रम प्रारंभ हुआ है,
विकास के इस दोर में करुणा का महत्व ज्ञात हुआ है।
आओ साथ मिल हम इस दायित्व को स्वीकार करें,
पृथ्वी को संरक्षित रख परिवर्तन का सम्मान करें।
एक बार फिर कल आज से थोड़ा अलग सा दिखाई देगा,
और हमे ये मौसम भी कुछ बदलता सा दिखाई देगा।
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